Waqf Bill : राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद वक्फ संशोधन विधेयक कानून बन गया है। हालांकि संसद के दोनों सदनों से पारित होते ही इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी गई। अब तक कई याचिकाएं दायर की जा चुकी हैं, जिनमें इसे संविधान के खिलाफ और धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन बताते हुए चुनौती दी गई है।
लेकिन अगर हम किसी कानून की जांच करने के लिए कोर्ट के दायरे को देखें, तो यह थोड़ा सीमित है। कोर्ट किसी भी कानून की जांच तीन आधारों पर करता है, विधायी क्षमता, संविधान का उल्लंघन और मनमाना होना। अगर हम तीनों आधारों पर गौर करें, तो सुप्रीम कोर्ट से इसे खारिज करवाना बहुत आसान नहीं लगता।
कानूनी सिद्धांत क्या है?
लेकिन यह तय है कि अगर मामले की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट से विस्तृत फैसला आता है, तो देश में धार्मिक दान संपत्तियों के प्रबंधन पर एक स्पष्ट व्यवस्था हो सकती है।
जब वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 कोर्ट में पहुंचेगा, तो किसी भी कानून पर विचार करने के लिए तय कानूनी सिद्धांतों पर गौर करना जरूरी हो जाता है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस एसआर सिंह का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट किसी भी कानून की वैधानिकता को मुख्य रूप से तीन आधारों पर मानता है। तीन कसौटियाँ क्या हैं? पहला, जिस व्यक्ति या संस्था ने कानून पारित किया है, उसे ऐसा करने का अधिकार नहीं था, यानी विधायी क्षमता; दूसरा, वह कानून संविधान के किसी प्रावधान या मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है या संविधान की मूल भावना के खिलाफ है।
तीसरा, मनमाने तरीके से कानून पारित करना,
यानी मनमानी। याचिकाओं का मुख्य आधार क्या है? अगर वक्फ संशोधन कानून को इन तीन आधारों पर देखा जाए तो इसे संसद में विधायी क्षमता की कसौटी पर घंटों बहस के बाद पारित किया गया है। दूसरा आधार संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन है। कोर्ट में दायर याचिकाओं का मुख्य आधार यह है कि यह कानून संवैधानिक अधिकारों और मुसलमानों के धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है।
याचिका में क्या तर्क दिया गया?
दलील यह है कि संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत सभी को धार्मिक स्वतंत्रता और धार्मिक मामलों के प्रबंधन की आजादी है, जबकि यह नया कानून मुसलमानों की इस आजादी में दखल देता है और सरकारी दखल बढ़ता है। याचिकाओं में वक्फ बोर्ड के सदस्यों में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने का भी विरोध किया गया है।
धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ नहीं है कानून
माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट में धार्मिक स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार बहस के केंद्र में रहेगा और सुप्रीम कोर्ट जो भी आदेश देगा, उसे लागू किया जाएगा। लेकिन अगर कानून पर सरकार के तर्क पर गौर करें तो उसके मुताबिक यह कानून धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ नहीं है बल्कि संपत्तियों के प्रबंधन से जुड़ा है।
सुव्यवस्थित सुधारों की जरूरत
सरकार कानून को सही ठहराते हुए दलील दे रही है कि वक्फ प्रबंधन में चुनौतियों का समाधान करने के लिए व्यवस्थित सुधारों की जरूरत थी, जिसके लिए वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 लाया गया था। पारदर्शिता, जवाबदेही और कानूनी निगरानी सुनिश्चित करके वक्फ संपत्तियां गैर-मुस्लिमों और अन्य हितधारकों के अधिकारों का उल्लंघन किए बिना अपने इच्छित धर्मार्थ उद्देश्यों को पूरा कर सकती हैं।