Is Rice Becoming Poison : वही अनाज जो दुनिया की आधी से अधिक आबादी को खिलाता है, अब एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या बन सकता है। हाल ही में प्रकाशित अंतर्राष्ट्रीय शोध में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण चावल में आर्सेनिक जैसे विषाक्त पदार्थ बढ़ रहे हैं। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यदि यही प्रवृत्ति जारी रही तो वर्ष 2050 तक अकेले चीन में ही करीब 1 करोड़ 93 लाख लोग कैंसर जैसी घातक बीमारियों का शिकार हो सकते हैं। रिपोर्ट में भारत सहित अन्य एशियाई देशों में भी जोखिम बढ़ने की बात कही गई है।
आर्सेनिक कोई नया तत्व नहीं है। यह मिट्टी, पानी और हवा में पाया जाता है। लेकिन जब आप धान बोते हैं तो मिट्टी से यह आर्सेनिक पौधों के माध्यम से धान में आ जाता है। हालांकि यह मात्रा कम है, लेकिन अगर यह सालों तक शरीर में प्रवेश करती रहे तो कैंसर, फेफड़ों की बीमारी और हृदय रोग जैसी गंभीर बीमारियों का कारण बन सकती है।
कोलंबिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर लुईस ज़िस्का ने इस शोध का नेतृत्व किया और कहा कि बढ़ते तापमान और कार्बन डाइऑक्साइड चावल को विषाक्त बना रहे हैं। शोधकर्ताओं ने चीन के चार अलग-अलग क्षेत्रों में चावल की 28 किस्में लगाईं और 10 वर्षों तक उन पर निगरानी रखी। परिणाम चौंकाने वाले थे। उन्होंने पाया कि जैसे-जैसे तापमान और कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर बढ़ता गया, चावल में आर्सेनिक का स्तर भी बढ़ता गया।
चावल में मिलाया जा रहा जहर लोगों को कर रहा बीमार
इसके बाद शोधकर्ताओं ने भारत, बांग्लादेश, चीन, वियतनाम, इंडोनेशिया, म्यांमार और फिलीपींस जैसे सात एशियाई देशों पर ध्यान केंद्रित किया जहां चावल की खपत सबसे अधिक है। इन देशों में चावल की प्रति व्यक्ति खपत के आंकड़ों के आधार पर उन्होंने अनुमान लगाया कि भविष्य में इसका मानव स्वास्थ्य पर कितना प्रभाव पड़ेगा।
अध्ययन में पाया गया कि इन सभी देशों में चावल में आर्सेनिक का उच्च स्तर मूत्राशय, फेफड़े और त्वचा कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों की बढ़ती घटनाओं से सीधे तौर पर जुड़ा हुआ था। लैंसेट में प्रकाशित रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि आर्सेनिक न केवल कैंसर, बल्कि मधुमेह, गर्भावस्था संबंधी समस्याओं, बच्चों में मस्तिष्क संबंधी विकृतियों, कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली और कई अन्य घातक बीमारियों का भी प्रमुख कारण हो सकता है।
इस रिपोर्ट से यह स्पष्ट होता है कि यदि चावल में आर्सेनिक के स्तर को नियंत्रित नहीं किया गया तो इन देशों को भविष्य में गंभीर स्वास्थ्य संकट का सामना करना पड़ सकता है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि यह खतरा भारत-चीन या एशिया तक ही सीमित नहीं है। यहां तक कि यूरोप और अमेरिका जैसे देशों में, जहां मिट्टी में आर्सेनिक का स्तर कम है, चावल मानव शरीर में प्रवेश करने वाले अकार्बनिक आर्सेनिक का प्रमुख स्रोत बन रहा है।
तो क्या हमें चावल खाना बंद कर देना चाहिए?
इस रिपोर्ट के जारी होने के बाद यह सवाल लोगों के मन में जरूर होगा, जिसका जवाब है ‘नहीं’। लेकिन सावधानी की जरूरत है. शोध से पता चला है कि चावल को अच्छी तरह से धोकर, पांच मिनट तक उबालकर, पानी निकालकर, फिर ताजे पानी में पकाने से आर्सेनिक की मात्रा काफी कम हो सकती है। शेफील्ड विश्वविद्यालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस प्रक्रिया से लाल चावल से 50% तक आर्सेनिक तथा सफेद चावल से 74% तक आर्सेनिक हटाया जा सकता है। पूर्वी अफ्रीका के कई क्षेत्रों से प्राप्त बासमती चावल और अनाज में आर्सेनिक का स्तर कम पाया गया। यद्यपि सफेद चावल में लाल चावल की तुलना में कम पोषक तत्व होते हैं, तथापि इसमें आर्सेनिक भी कम होता है।





