Stary Dogs : आवारा कुत्तों पर नियंत्रण सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद केंद्र सरकार सख्त.

Stary Dogs  : आवारा कुत्तों की समस्या पर सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश के बाद केंद्र सरकार भी हरकत में आ गई है। अब राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए कम से कम 70 प्रतिशत कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण अनिवार्य कर दिया गया है।

पहले केंद्र की भूमिका सिर्फ़ सुझाव देने तक सीमित थी, अब इसे अनिवार्य बनाकर राज्यों की जवाबदेही तय की गई है। हर राज्य को हर महीने अपनी प्रगति रिपोर्ट भेजनी होगी, ताकि कार्रवाई सिर्फ़ कागज़ों तक सीमित न रहे।

तत्काल ब्यौरा भी मांगा गया

सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ कहा है कि नसबंदी और टीकाकरण के बाद कुत्तों को उनके मूल स्थान पर ही छोड़ दिया जाए। इस निर्देश के अनुरूप, केंद्र ने अपनी नीति में भी बदलाव किया है। पशुपालन मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को पत्र लिखकर कहा है कि अगर कोई राज्य पीछे रहता है, तो उसकी जवाबदेही तय की जाएगी। केंद्र की गंभीरता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पत्र प्राप्ति की पुष्टि और तत्काल उठाए गए कदमों का ब्यौरा भी मांगा गया है।

केंद्र ने राज्यों को लक्ष्य के साथ-साथ साधन भी उपलब्ध कराए हैं।

नसबंदी और टीकाकरण के लिए प्रति कुत्ता 800 रुपये और प्रति बिल्ली 600 रुपये का अनुदान दिया जाएगा।

बड़े शहरों में आहार क्षेत्र, रेबीज नियंत्रण इकाइयाँ स्थापित करने और आश्रय स्थलों के उन्नयन के लिए अलग से धनराशि उपलब्ध कराई जाएगी।

छोटे आश्रय स्थलों को 15 लाख रुपये और बड़े आश्रय स्थलों को 27 लाख रुपये तक की सहायता मिलेगी।

पशु अस्पतालों और आश्रय स्थलों के लिए 2 करोड़ रुपये का एकमुश्त अनुदान दिया जाएगा।

नसबंदी और टीकाकरण कार्य

केंद्र ने राज्यों को लिखे पत्र में उनसे संशोधित पशु जन्म नियंत्रण मॉडल को मानक संचालन प्रक्रिया के रूप में अपनाने को कहा है। बड़े शहरों में आहार क्षेत्र, 24 घंटे हेल्पलाइन और रेबीज नियंत्रण इकाइयाँ स्थापित करने पर विशेष ज़ोर दिया जा रहा है, ताकि नसबंदी और टीकाकरण का कार्य निर्बाध रूप से चलता रहे। इससे अनियंत्रित प्रजनन पर अंकुश लगेगा और नागरिक सुरक्षा में ठोस सुधार होगा।

आशा कार्यकर्ताओं की भागीदारी भी ज़रूरी

योजना को ज़मीनी स्तर पर लागू करने के लिए स्थानीय स्वयंसेवी संगठनों और आशा कार्यकर्ताओं की भागीदारी भी ज़रूरी मानी जा रही है। इनकी मदद से मोहल्ला स्तर पर कुत्तों की पहचान, मानवीय तरीक़े से उन्हें पकड़ना, उनका इलाज, टीकाकरण और पुनर्वास का काम तेज़ होगा। सामुदायिक भागीदारी से विवादों में भी कमी आएगी और निगरानी में भी सुधार होगा।

सिर्फ़ संख्या ही नहीं, बीमारियाँ भी चिंता का विषय
केंद्र का मानना ​​है कि चुनौती सिर्फ़ कुत्तों की बढ़ती संख्या ही नहीं है, बल्कि उनके काटने से लोगों में फैलने वाली बीमारियाँ भी हैं। रेबीज़ जानलेवा है, इसलिए टीकाकरण ज़रूरी है। इसलिए, राज्यों को पशु कल्याण बोर्ड को विस्तृत मासिक रिपोर्ट भेजने का निर्देश दिया गया है। इन रिपोर्टों के आधार पर यह तय किया जाएगा कि प्रत्येक राज्य ने नियमों और अदालत के निर्देशों का कितनी गंभीरता से पालन किया।

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